सहजन
परिचय
सहजन पौष्टिकता से भरपूर
बहुउद्देशीय वृक्ष है। सहजन के वृक्ष का प्रत्येक भाग जड़ तना पत्ती या फल फूल बीज तेल तथा वह किसी न किसी रूप से
मनुष्य एवं जन जानवरों द्वारा गाया का उपयोग में लाया जाता है। आयुर्वेद
में मोरिंगा का उपयोग प्राचीन समय से चला आ रहा है। पौष्टिकता से भरपूर
होने के कारण इससे विभिन्न प्रकार की उत्पाद बनाए जाने लगे हैं। यदि इस
पौधे का प्रत्येक घर या प्रत्येक परिवार में विधिवत उपयोग किया जाए तो यह
कुपोषण की समस्या का समाधान करने में अहम भूमिका निभा सकता है। इन दिनों सहजन की फूलों
वाली कहानियां बाजारों में आसानी से देखने को मिल जाती है साथ ही सहजन की फलिया
यानी कि ड्रमस्टिक भी मिल
जाती है। इनकी फलियों में अन्य सब्जियों व फलों की तुलना में विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, अमीनो एसिड व खनिज पदार्थ अधिक होते
हैं।
इसकी पत्तियां वह फूल भी विभिन्न पोषक तत्वों
का महत्वपूर्णस्त्रोत है। जिनमें विटामिन बी से वह बीटा कैरोटीन मैग्नीशियम
प्रोटीन प्रचुरता
से पाए जाते हैं
। इनके बीजों से प्राप्त तेल में जैतून के तेल से भी ज्यादा प्रभावशाली गुण होते हैं।
इस प्रकार इस पौधे का फल,
फूल, पत्ते, तना और यहां तक की जड़ भी उपयोगी
है।
इस पौधे के बहुत सारे
औषधीय उपयोग है जैसे कि-
·
घाव भरने में मदद करना,
·
दर्द व सूजन को कम करने में मदद करना,
·
अंधता निवारण में उपयोगी,
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हड्डियों की बीमारियों में काम आता है,
·
महिला सुपोषण हेतु उपयोगी,
·
गैस्ट्रिक और अल्सर में उपयोगी,
·
ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर की बीमारियों में
उपयोगी
·
तंत्रिका तंत्र को प्रभावी बनाने,
·
मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ाने और
·
त्वचा में निखार लाने और इन जैसी कई बीमारियों
और रोगों में काम आता है इसके
अलावा इसकी छाल का उपयोग पशुओं के सिंगर टूटने पर बांधने पर आराम मिलता है।
सहजन की
उन्नत किस्में
मोरिंगा की उन्नत किस्में खुशी विद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों, आईसीएआर अनुसंधान केंद्रों आदि
द्वारा विकसित की गई जिनकी उत्पादन क्षमता, पक्का अवधि, गुनता आदि की बातें ध्यान में रखने के लिए उन्नत किस्मों का विकास किया जो लाभदायक
होती है। उन्नत किस्मों में निम्न किस में है जो अधिक उत्पादन देती है।
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पी के एम- 1
·
पी के एम- 2
·
ओडीसी
·
सी ओ- 1 आदि।
जलवायु एवं मृदा
सहजन की खेती शुष्क वह
गर्म जलवायु में भी आसानी से होती है। पौधों की बढ़वार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। लेकिन यह पौधा 10 डिग्री सेल्सियस तापमान
से लेकर 50 डिग्री सेल्सियस तापमान तक भी
आसानी से फल फूल सकता है। अधिक धूप और गर्म वातावरण किसके लिए उपयुक्त माना जाता है। सहजन
उत्पादन के लिए विशेष
प्रकार की मुद्दा की आवश्यकता नहीं होती, यह विभिन्न प्रकार की जमीन में पनपता है। सहजन बलुई, चिकनी मिट्टी, अम्लीय मिट्टी, काली मिट्टी में अच्छी
तरह से बढ़ता है। इस पौधे में 21 मिली मोहस प्रति सेंटीमीटर
तक लवणता तथा पी. एच. मान 5
से 8 सहन करने क्षमता होती है।
सहजन को लगाने का समय
ज्यादा बारिश का और ज्यादा ठंड का मौसम छोड़ कर
सहजन को साल भर में कभी भी
लगा सकते हैं। सहजन के पौधे बीज द्वारा उगाए जाते हैं। बीज द्वारा उगाए गए पौधे
ज्यादा गुण वाले होते हैं।
खाद एवं उर्वरक
सहजन की जैविक खेती के
लिए नीचे दिए गए खादो एवं उर्वरकों की आवश्यकता होती है।
·
वर्मी कंपोस्ट/ केंचुए का खाद- जिसे जिसे डालने
से हमारे 2 मिनट में पोषक तत्वों की
पूर्ति होती है।
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ट्राईकोडर्मा पाउडर- एक फफूंद नाशक है जो जमीन
में मौजूद हानिकारक फफूंद
को नष्ट कर देता है।
·
नीम केक / नीम की खली- यह एक कीटनाशक है जिसे
जमीन में डालने से जमीन
में मौजूद की या उनके अंडे नष्ट होते हैं।
·
जिप्सम- यह एक मृदा अनुकूलक या सॉइल कंडीशनर है
जो मिट्टी को भुरभुरा एवं
हवादार बना देता है।
इन सभी खाद एवं उर्वरकों को अलग-अलग मात्रा में
डालना जरूरी है जिससे हमारे पौधे
को उपयोगी पोषक तत्व और सहयोग मिलता है।
सहजन के
बीज लगाने का तरीका
सहजन की पत्तों की खेती के लिए 1 एकड़ में 6.5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। पत्तों
की खेती में बीज को कम दूरी पर लगाया
जाता है, पौधों से पौधों की दूरी
डेढ़ फीट होती है और लाइन से दूसरी लाइन की दूरी डेढ़ फिट होती है इस प्रकार से 1 एकड़ में लगभग 20000 पौधे लगाए जा सकते हैं। बीज को
लगाने से पहले उनको उपचारित किया जाना जरूरी है।
बीज
का उपचार
सहजन का बीज ऊपर से कठिन होता है इसलिए इसे लगाने से
पहले बीज को उपचारित
किया जाता है। इसको उपचारित करने से 2 फायदे होते हैं पहला फायदा इसका जर्मीनेशन परसेंटेज बढ़ जाता है और
दूसरा फायदा बीज को हानिकारक
जंतुओं से मुक्त किया जाता है। बीजों को जैविक तरीके से उपचारित करने के लिए
सर्वप्रथम एक 10 लीटर आकार वाला
बर्तन ले उसमें 5 लीटर पानी डालें उसी पानी
में 2 लीटर देसी गाय का
गोमूत्र और 100 ग्राम
ट्राइकोडरमा पाउडर मिलाएं। इन सभी सामग्री को अच्छी तरह से मिलाएं तत्पश्चात उसमें
बीज को डालें और उस पानी में बीजों को लगभग 5 से 6
घंटे रहने दे।
बीजों को 6 घंटे बाद उस
मिश्रण में से निकाले और उसे कॉटन के कपड़े में डालें, कपड़े की गांठ बांधे और उस पोटली को रात भर या 12 घंटे तक एक जगह पर लटकाए।
बीच बीच में इस पोटली पर पानी का छिड़काव करें। सुबह पोटली को खोल दें उसमें से
बीज को निकाले, यह बीज बोने के लिए तैयार
होंगे।
सहजन का
बीज लगाने का तरीका-
सीधी
बुवाई
सहजन के पत्तों की खेती के लिए सहजन के बीज 1.5 फीट x 1.5 फीट अंतर से लगाए जाएंगे। 1 पौधे से दूसरे पौधे की
दूरी डेढ़ फीट और एक लाइन से दूसरे लाइन की दूरी डेढ़ फीट होगी। इस तरह से बीज
को हाथ से या खुरपी की मदद
से छोटा सा गड्ढा बनाकर उसमें डाला जाएगा और ऊपर से मिट्टी ढक दी जाएगी।
पूरे खेत में बीज
लगाने के बाद तुरंत सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए, एक से डेढ़ हफ्ते के लिए जमीन में बीजों के पास
नमी नहीं चाहिए ताकि उसका जर्मी नेशन
अच्छी तरह से हो। एक बार पौधा बीज में से ऊपर आ जाए उसके बाद यानी
कि 15 दिनों के बाद
दूसरी सिंचाई की आवश्यकता होती
है। इसके बाद वाली सिंचाई अपने जमीन के अनुसार और अपने एरिया के जलवायु
के अनुसार करनी पड़ती है। मोरिंगा की खेती के लिए आमतौर पर ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं
होती।
नर्सरी
बनाना
किसान भाई 3 मीटर x 3 मीटर की रैज्ड बेड बनाए, उस बेड पर 2-2 इंच की दूरी पर उपचारित
बीज को बोए, इसी नर्सरी में
बीजों से पौधा तयार होगा जिसे 6-7 हफ्ते तक रखे, नर्सरी में पौधा लगभग 1 से 1.5 फुट ऊंचाई का होगा, उस के बाद नर्सरी में से
इन पौधों को निकाले और मुख्य भूमि में लगाए। उसके तुरंत बाद सिंचाई करनी होती है ।
सहजन में
आने वाले रोग एवं कीट
मोरिंगा में रोग व कीटों
से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होता। पौधों की शाखाओं पत्तियों विशाल को कीड़े अधिक नुकसान
पहुंचाते है। सहजन के पौधों को हानि पहुंचाने
वाले कीड़े जैसे कि- मोरिंगा हेयर हेयर सुंडी या बालों वाली सूंडी, मोरिंगा बुडवर्म, पत्ती भक्षक सुंडी, फली बेदक मक्खी और छाल भक्षक संडे आदि के डे
अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस कीटों की रोकथाम के लिए आप हमारी संस्था राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण परिषद से संपर्क कर
सकते हैं।
खरपतवार नियंत्रण-
सहजन
की फसल में उगे खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से
पेंडीमिथेलिन का छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही 25 से 30 दिन
के अंतराल पर निराई गुड़ाई करने से भी खरपतवार नियंत्रण किया जाना चाहिए।
सहजन के
पत्तों की कटाई
सहजन की पत्तों की खेती
में तीन (3) महीने के अंतराल से पत्तों की कटाई छटाई होती है। इस
प्रकार से सहजन की 1 साल में चार बार
कटाई होती है। लेकिन
पहली कटाई चार या पांच वे माह में आ सकती है।
सहजन की डालियों को काटने के बाद उसमें से छोटी डालिया अलग करनी है और उन
छोटी डालियों को पानी
से धोना है। पानी से धोने के बाद इन पत्तियों को छांव में या शेडनेट के नीचे
सुखाने के लिए डालना है। आमतौर पर सहजन की पत्तियां अच्छे प्रकाश के दिनों में 3 से 4 दिन में सूख जाती है। पत्तों को सुखाने के बाद
इनको बोरियों में भरा जाता है और बाद मे इन्हें स्टोर किया या बेचा जाता
है।
सहजन की खेती में अंतर फसल
मोरिंगा की फसल के साथ किसान
भाई बहुत सारी अंतर फसलें ले सकते हैं जिसमें सब्जियां या अन्य औषधीय पौधे जो की ऊंचाई
में कम है जैसे कि
स्टीविया, सफेद मूसली, अश्वगंधा, तुलसी, काली हल्दी और अन्य बहुत सारी फसलें
अंतर फसलों के तौर पर ले सकते हैं।